कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की चार राज्य सरकारों ने कहा है कि उनके पास कोरोना वैक्सीन के पर्याप्त डोज नहीं हैं। इस वजह से हो सकता है कि 1 मई से 18-45 वर्ष आयु समूह को वैक्सीन डोज लगाने की शुरुआत न की जाए। इन राज्यों में झारखंड, पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल है, पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मुद्दे पर कांग्रेस की सरकारों वाले अन्य मुख्यमंत्रियों के साथ खड़े नहीं दिखाई दे रहे।
दरअसल, एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब और झारखंड (झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस सरकार) के स्वास्थ्य मंत्रियों ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। उनका कहना है कि मैन्युफैक्चरर्स से वैक्सीन स्टॉक केंद्र ने हाईजैक कर लिया है। ऐसे में उनके लिए 18-45 वर्ष आयु समूह को 1 मई से वैक्सीनेशन ड्राइव में शामिल करना मुश्किल रहने वाला है।
क्या दिक्कत है इन राज्यों की?
- राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के मुताबिक उन्होंने सभी वयस्कों को वैक्सीनेट करने का अभियान शुरू करने के लिए वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) से संपर्क साधा था। पर वहां से जवाब मिला कि 15 मई से पहले वैक्सीन डोज उपलब्ध नहीं करा सकेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे पास क्षमता है। हम वैक्सीन डोज लगाने को तैयार भी हैं, पर डोज नहीं हैं।
- दरअसल, केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते कुछ राज्यों की मांग के बाद 18+ को वैक्सीनेट करने को रजामंदी दे दी थी। पर वह इसका खर्चा नहीं उठाना चाहती। केंद्र ने साफ किया है कि वह सिर्फ 45+ को वैक्सीनेट करने के लिए राज्यों को पहले की तरह फ्री में वैक्सीन देती रहेगी। अगर 18-45 वर्ष समूह के लोगों को वैक्सीन लगवानी है तो इसकी व्यवस्था राज्यों को करनी होगी। राज्यों को ही वैक्सीन निर्माता से वैक्सीन लेनी होगी।
- कांग्रेस के मंत्रियों की मांग है कि 18+ को वैक्सीन लगाने का खर्च भी केंद्र सरकार वहन करे, पर केंद्र सरकार इसके लिए राजी नहीं है। केंद्र का कहना है कि पहले वह हाई-रिस्क ग्रुप को वैक्सीनेट करना चाहता है। यानी 45+ को वैक्सीनेट करने के बाद ही वह वैक्सीनेशन में अन्य आयु समूहों को शामिल करने की सोचेगा।
क्या पूरे देश में 1 मई से सबको वैक्सीन लगाने के लिए पर्याप्त डोज हैं?
- नहीं। 24 अप्रैल की स्थिति देखें तो देश में सिर्फ 1.84 करोड़ वैक्सीन डोज हैं। हर दिन 30-35 लाख डोज दिए जा रहे हैं। इस हिसाब से यह डोज पांच-छह दिन से ज्यादा नहीं चलेंगे। अलग-अलग राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पास 25 हजार से लेकर 13.06 लाख तक डोज मौजूद हैं। यह डोज सिर्फ 45+ को लगने हैं।
- केंद्र सरकार ने कहा है कि जितनी भी वैक्सीन देश में उपलब्ध होगी, उसका 50% वह अपने पास रखेगी। बची हुई 50% वैक्सीन निर्माता राज्य सरकारों और प्राइवेट अस्पतालों में बेच सकते हैं। केंद्र सरकार भी अपने पास के वैक्सीन डोज किए गए इस्तेमाल, वेस्टेज रेट, कोविड-19 नए केसेस के आधार पर राज्यों को देगी।
- यानी किसे कितने डोज मिलेंगे, यह अब भी तय नहीं है। इस समय भारत बायोटेक की कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड का इस्तेमाल हो रहा है। दोनों ही वैक्सीन निर्माता मिलकर इस समय 8.2 करोड़ डोज हर महीने बना रहे हैं, जबकि 45+ को वैक्सीनेट करने में हर महीने औसत 13.18 करोड़ डोज चाहिए होंगे।
- अब सरकार ने 18+ को वैक्सीन डोज देने की तैयारी की है तो डोज की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है।
क्या केंद्र और राज्यों में वैक्सीन की कीमत को लेकर सहमति है?
- नहीं। केंद्र को दोनों ही वैक्सीन का एक डोज 150 रुपए में मिल रहा है, जबकि राज्यों को इसके लिए ज्यादा पैसा चुकाना पड़ेगा। कोवैक्सिन के एक डोज के लिए 600 रुपए और कोवीशील्ड के लिए 400 रुपए। यह वैक्सीनेशन राज्यों के लिए खर्चीला रहने वाला है। इस कदम की आलोचना भी हो रही है कि जब केंद्र को एक डोज 150 रुपए में मिल रहा है तो कंपनियां राज्यों को इतने महंगे डोज क्यों दे रही हैं।
- वैसे, एक पेंच यह भी है कि केंद्र भले ही कह रही हो कि उसे 150 रुपए में एक डोज मिल रहा है। सीरम के सीईओ अदार पूनावाला ने बार-बार कहा है कि शुरुआती डोज के लिए 150 रुपए कीमत रखी गई थी। बाद में वह केंद्र और राज्य सरकारों से 400 रुपए प्रति डोज की कीमत ही वसूलेंगे।
- कोवीशील्ड को विकसित करने वाली ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने दुनियाभर में इसके लिए जो कीमत तय की है, उससे भी महंगी भारत में रहने वाली है। भारत में इसे बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट ने तय किया है कि प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन का एक डोज 600 रुपए में रहेगा।
- आश्चर्य इस बात का है कि एस्ट्राजेनेका के एक डोज की कीमत अमेरिका, यूके और यूरोपीय संघ में इससे भी कम रहने वाली है। इतना ही नहीं सीरम इंस्टीट्यूट ने बांग्लादेश, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका को जो वैक्सीन भेजी थी, उससे ज्यादा कीमत भारत में मांगी जा रही है। ज्यादातर देशों में सरकारें ही वैक्सीन डोज का खर्च उठा रही हैं।