पंजाब के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी और भाजपा नेता इकबाल सिंह लालपुरा का कहना है, आतंकवाद के दौर के घाव अभी भी ताजा हैं. और इसका समाधान भरोसा बहाल करने वाला एक जस्टिस ट्रिब्यूनल ही है.
नई दिल्ली: आईपीएस अधिकारी से भाजपा नेता बने इकबाल सिंह लालपुरा का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘हममें से अधिकांश लोगों से बेहतर सिख’ हैं.
पंजाब पुलिस में उपमहानिरीक्षक रह चुके लालपुरा, जिन्हें अगस्त में भाजपा संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था, ने दिप्रिंट को दिए इंटरव्यू के दौरान सिखों के घावों को पूरी तरह ‘भरने’ के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत बताई.
सिख समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले लालपुरा ने यह दावा करते हुए कि सरकार सिखों के लिए ‘सब कुछ’ कर रही है, मोदी सरकार की कुछ खास पहल का हवाला भी दिया, मसलन 2019 में करतारपुर कॉरिडोर जाना और उसी साल एक सीक्रेट ब्लैकलिस्ट से विदेशों में बसे सिखों का नाम हटाना आदि.
लालपुरा, जो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी हैं, ने आगे कहा, ‘सिखों को विदेशी नागरिकों को काली सूची से हटा दिया गया है. हम उन्हें नौकरियां दे रहे हैं. मोदी सरकार सब कुछ कर रही है. मोदीजी सिखों के लिए हमेशा उपलब्ध हैं.’
लालपुरा ने कहा, ‘हम सिखों से प्यार करते हैं और उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. मोदीजी ने घोषणा की थी कि वह गुरु नानक देव के जन्मदिन पर कृषि कानूनों को वापस ले रहे हैं. वह हममें से अधिकांश से बेहतर सिख हैं.’ साथ ही जोड़ा कि भाजपा सिखों के साथ ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ के विचार को साकार करना चाहती है.
1981 में, तरनतारन के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) लालपुरा उन तीन अधिकारियों में एक थे, जिन्होंने सिखों और निरंकारियों के बीच संघर्ष से जुड़े एक मामले में सिख उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले को गिरफ्तार किया था.
लालपुरा ने कहा कि पंजाब में उग्रवाद के दौर के घाव अभी भी सिखों के मन में ताजा हैं, खासकर उन लोगों में जिनके परिवार के सदस्य या तो मारे गए थे या आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत गिरफ्तार किए गए. उस समय पंजाब में लागू रहे इस आतंकवाद-रोधी पूर्व कानून के तहत कानून प्रवर्तन एजेंसियों को व्यापक स्तर पर सर्च, जब्ती और गिरफ्तारी की शक्तियां मिली हुई थीं.
‘सच्चाई सामने लाने वाला आयोग’
लालपुरा ने कहा कि आतंकवाद के दौर में अपने प्रियजनों को गवां देने वाले सिखों के घावों को भरने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘करीब 10,000 सिख मारे गए (आतंकवाद के दौर में), और 15,000 को गिरफ्तार किया गया. ऐसे 25,000 लोगों के परिवार आज भी आहत महसूस कर रहे हैं. हमें उनसे बात करने की जरूरत है और प्रयास किए जा रहे हैं. 1992-93 तक हजारों लोगों ने आत्मसमर्पण किया. लेकिन हमने उनके घावों को भरने के लिए कुछ नहीं किया है.’
गौरतलब है कि रंगभेद विरोधी नेता नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में दक्षिण अफ़्रीकी सरकार ने 1995 में एक सुलह आयोग गठित किया था जो एक तरह से कोर्ट की तरह ही न्यायिक निकाय था और इसका उद्देश्य रंगभेद से पीड़ित लोगों के भावनात्मक रूप से इससे उबारना था.
चुनाव, शासन और धर्म परिवर्तन के आरोपों पर क्या बोले
2012 में राजनीति में आए लालपुरा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया कि मार्च में विधानसभा चुनाव के दौरान पंजाब में ‘मोदी मैजिक’ कारगर नहीं रहा. इसके बजाय, उन्होंने इसके लिए नवंबर 2020 में शुरू हुए और करीब सालभर चले किसानों के आंदोलन के दौरान ‘सिख बनाम भारत सरकार का नैरेटिव’ बना देने के लिए ‘किसान संघों जैसे निहित-स्वार्थी समूहों’ को जिम्मेदार ठहराया.
उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार के स्तर पर किसानों के आंदोलन से ठीक तरह से नहीं निपटा गया और अन्य राजनीतिक दल भी इसका हिस्सा रहे. उन्होंने कहा कि मार्च में विधानसभा चुनावों ने दिखाया कि पंजाब में लोग बदलाव चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘इस बार लोग श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर अकालियों से नाराज थे. कांग्रेस भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी. लोग विकल्पों की तलाश कर रहे थे.’ पंजाब में शानदार जीत दर्ज करने वाली आम आदमी पार्टी का जिक्र करते उन्होंने कहा कि वह मुफ्त रेवड़ियां बांटने का वादा करके सत्ता में आई है, जो कि सही नीति नहीं है.
उन्होंने कहा कि पंजाब संकट के दौर से गुजर रहा है और अपराध दर लगातार बढ़ रही है.
उन्होंने कहा, ‘भगवंत मान सरकार को पता नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं. हम हर दिन देखते हैं कि लगभग 50 लोगों का तबादला किया जा रहा है. वे नहीं जानते कि अपराध पर कैसे काबू पाया जाए. जबकि अपराध की रोकथाम प्राथमिकता होनी चाहिए थी.’
भाजपा के पूर्व गठबंधन सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के बारे में चर्चा करते हुए लालपुरा ने कहा कि यह साझेदारी ‘कभी 50-50’ नहीं थी और भाजपा पंजाब में गठबंधन के दौरान भी अकालियों की तुलना में कम सीटों पर लड़ रही थी.
उन्होंने कहा, ‘हमारी भागीदारी 20 प्रतिशत से भी कम थी और ये सब पंजाब में हिंदुओं की सुरक्षा और शांति के लिए था. इसलिए हमने गठबंधन चलाने को ध्यान में रखते हुए अकालियों के लिए अपनी सीटें छोड़ी थीं.’
लालपुरा ने जबरन धर्म परिवर्तन के आरोपों के मुद्दे पर भी बात की, और इससे निपटने में नाकाम रहने के लिए पिछली सरकार को घेरा.
इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि चार अज्ञात बदमाशों ने 30 अगस्त को तरनतारन में एक चर्च में तोड़फोड़ की. कुछ दिनों बाद सिख धर्मगुरू ने श्रद्धालुओं से भावनात्मक अपील की कि वे पंजाब में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सतर्क रहें.