चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीन दिन के दौरे पर बुधवार देर रात सऊदी अरब की राजधानी रियाद पहुंचे। यहां उन्हें रेड कार्पेट वेलकम मिला। दोनों देशों के बीच अलग-अलग सेक्टर में कुल मिलाकर 30 अरब डॉलर के समझौते होंगे।
जिनपिंग का प्लेन जैसे ही सऊदी अरब के एयरस्पेस में पहुंचा तो सऊदी रॉयल एयरफोर्स के चार फाइटर जेट्स ने उसे एस्कॉर्ट किया। इसके साथ ही आसमान में ग्रीन स्मोक भी नजर आया।
चीन लंबे वक्त से गल्फ कंट्रीज में पैर पसारने की कोशिश कर रहा है। इस क्षेत्र में अब तक अमेरिकी दबदबा रहा है। यही वजह है कि बाइडेन सरकार इस दौरे से परेशान नजर आ रही है। अमेरिका और सऊदी के बीच लंबे वक्त से अलग-अलग मुद्दों पर मतभेद रहे हैं।

इकोनॉमी ही एजेंडा
‘अरब न्यूज’ के मुताबिक, सऊदी अरब और चीन के बीच रिश्तों का एक ही एजेंडा है। यह है इकोनॉमी। जिनपिंग की इस विजिट के दौरान दोनों देशों के बीच कुल मिलाकर 30 अरब डॉलर के 20 समझौते होंगे।
दोनों देशों के बीच कल्चरल लेवल पर सहयोग की उम्मीद नहीं के बराबर है। इसकी वजह यह है कि सऊदी अरब कट्टर सुन्नी मुस्लिम देश है और चीन का कल्चर बिल्कुल अलग है। इसलिए दोनों देश ट्रेड पर ही फोकस करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान (MBS) जिनपिंग को सऊदी अरब का सिविलियन अवॉर्ड भी दे सकते हैं।
ट्रम्प-बाइडेन को नहीं मिला ऐसा सम्मान
- CNN की एक स्पेशल रिपोर्ट के मुताबिक- 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प सऊदी गए थे। इसके बाद दो महीने पहले प्रेसिडेंट जो बाइडेन ने रियाद का दौरा किया था। दोनों ही मौकों पर अमेरिका के इन दोनों प्रेसिडेंट्स को वो सम्मान नहीं मिला, जो अब जिनपिंग को मिल रहा है। यही वजह है कि अमेरिका अब जिनपिंग के इस दौरे पर बहुत पैनी नजर रख रहा है।
- अमेरिका और सऊदी रिश्ते किस दौर से गुजर रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाइडेन के सामने ही क्राउन प्रिंस सलमान ने साफ कर दिया था कि सऊदी अरब ऑयल प्रोडक्शन 2% तक कम कर रहा है। अमेरिका इस बात से सख्त खफा था। सऊदी ऑयल प्रोडक्शन करने वाले देशों के समूह ओपेक का अहम देश है।
- पिछले महीने सऊदी सरकार ने अमेरिकी वॉर्निंग को दरकिनार करते हुए क्रूड ऑयल प्रोडक्शन 2% तक कम कर भी दिया। अब जिनपिंग की विजिट के मायने ये हैं कि सऊदी अरब सरकार विकल्प के तौर पर चीन की तरफ देख रही है।
नया सऊदी ही नया गल्फ
- अमेरिकी रिसर्चर और सऊदी मामलों के एक्सपर्ट अब्दुल्लाह खालिक ने कहा- अमेरिका को पहला मैसेज तो यही है कि यह नया सऊदी अरब है और जो नया सऊदी है वही नया गल्फ भी है। अमेरिका को यह समझना होगा। दूसरी सच्चाई यह है कि चीन दुनिया के अलावा एशिया की बड़ी ताकत है। अब सऊदी के सामने कई विकल्प हैं। अमेरिका उसकी मजबूरी बहुत लंबे वक्त तक नहीं रह सकता।
- अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में अमेरिका ने प्रिंस सलमान पर बहुत दबाव बनाया। चीन उस दौर में शांत रहा। इसके बाद बहुत शॉर्ट नोटिस पर जिनपिंग ने 14 अरब नेताओं से मुलाकात की। अमेरिका यहीं से पिछड़ने लगा। अब जिनपिंग अमेरिका को उसके ही गढ़ में चैलेंज कर रहे हैं।
- पिछले साल सऊदी ने चीन को 50 अरब डॉलर के एक्सपोर्ट किए। यह सऊदी के कुल एक्सपोर्ट का 18% हैं। यह आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ने वाला है। 2016 में जब बराक ओबामा ने ईरान के साथ न्यूक्लियर डील साइन की थी तो सऊदी की सलाह को नजरअंदाज किया गया था। अब चीन के साथ रूस भी आ गया है और अमेरिका के लिए यह नया सिरदर्द है। अमेरिका ने सऊदी को F-35 देने पर भी फिलहाल रोक लगा रखी है। इससे भी नाराजगी है।
- अमेरिका को सबसे बड़ा डर यह सता रहा है कि कहीं चीन की बदनाम इलेक्ट्रॉनिक कंपनी हुबेई सऊदी और गल्फ देशों में 5G नेटवर्क का कॉन्ट्रैक्ट हासिल न कर ले। अगर ऐसा हुआ तो गल्फ में अमेरिकी ठिकानों की जासूसी आसान हो जाएगी।